भारत का रियल एस्टेट सेक्टर ग्रीन बिल्डिंग्स और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। जानिए कैसे ग्रीन टेक्नोलॉजी, सोलर एनर्जी और सस्टेनेबल सिस्टम भारत के कंस्ट्रक्शन सेक्टर को नई दिशा दे रहे हैं।
लेखक: प्रदीप सारण
कैटेगरी: ग्रीन होम
भारत का रियल एस्टेट सेक्टर अब पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा और ज़िम्मेदार कदम उठा रहा है। बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए अब ज़रूरी हो गया है कि निर्माण कार्य ऐसे तरीकों से किए जाएँ, जो प्रकृति को नुकसान न पहुँचाएँ।
अक्टूबर 2015 में भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संकल्प लिया था कि वह वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 33% से 35% तक की कटौती करेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने में रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन सेक्टर की भूमिका बेहद अहम है, क्योंकि निर्माण गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों की खपत के साथ-साथ प्रदूषण का भी एक बड़ा कारण बनती हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए अब भारत में ग्रीन बिल्डिंग्स (Green Buildings) को बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्रीन बिल्डिंग्स ऐसे भवन होते हैं, जिनमें ऊर्जा की कम खपत होती है, पानी का सही उपयोग किया जाता है और पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। इससे न सिर्फ प्रदूषण कम होता है, बल्कि लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित जीवनशैली भी मिलती है।
कुल मिलाकर, भारत का रियल एस्टेट सेक्टर अब सिर्फ इमारतें बनाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह एक पर्यावरण-जिम्मेदार भविष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। ग्रीन बिल्डिंग्स का बढ़ता चलन आने वाले समय में देश के सतत विकास (Sustainable Development) में अहम भूमिका निभाएगा।
पर्यावरणीय चिंताएँ केवल कंस्ट्रक्शन सेक्टर तक सीमित नहीं
पर्यावरण से जुड़ी समस्याएँ केवल निर्माण (Construction) उद्योग तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि आज लगभग हर आर्थिक गतिविधि इससे जुड़ी हुई है। चाहे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, सर्विस इंडस्ट्री, या रिटेल बिज़नेस हो—हर जगह पर्यावरण पर असर पड़ता है।
MSM India Ltd. के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (COO) राज सिंघल के अनुसार,
“पर्यावरणीय चिंताएँ केवल कंस्ट्रक्शन सेक्टर की समस्या नहीं हैं। ये लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं, जैसे मैन्युफैक्चरिंग, सर्विस सेक्टर और रिटेल आदि।”
उन्होंने आगे कहा कि सबसे ज़रूरी बात यह है कि हम इन समस्याओं को सिर्फ पहचानें ही नहीं, बल्कि उनका व्यावहारिक और प्रभावी समाधान भी निकालें। इसमें निर्माण के दौरान होने वाला वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, और पानी के अत्यधिक उपयोग जैसी समस्याएँ शामिल हैं।
अगर इन पर्यावरणीय मुद्दों को सही रणनीति और आधुनिक तकनीकों के ज़रिए मैनेज किया जाए, तो न सिर्फ प्रदूषण को कम किया जा सकता है, बल्कि सतत विकास (Sustainable Development) को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। यही सोच आने वाले समय में हर उद्योग के लिए ज़रूरी बनती जा रही है।
पारंपरिक भवन बनाम ग्रीन बिल्डिंग: कौन है भविष्य के लिए बेहतर?

भारत में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, आर्थिक विकास और बढ़ती उपभोग की आदतों के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों की आय बढ़ने के साथ-साथ बेहतर जीवनशैली की माँग भी बढ़ी है, जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है।
इसी वजह से अब यह समझना ज़रूरी हो गया है कि पारंपरिक भवन (Conventional Buildings) और ग्रीन बिल्डिंग्स (Green Buildings) में क्या अंतर है और क्यों ग्रीन बिल्डिंग्स को भविष्य की ज़रूरत माना जा रहा है।
🏢 पारंपरिक भवन (Conventional Buildings)
पारंपरिक भवन आमतौर पर बिना पर्यावरण को ध्यान में रखे बनाए जाते हैं। इनमें:
- पानी और बिजली की खपत अधिक होती है
- प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है
- कचरे का उत्पादन ज़्यादा होता है
- रहने वालों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है
🌱 ग्रीन बिल्डिंग (Green Buildings)
ग्रीन बिल्डिंग्स को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि वे पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखें और लंबे समय तक टिकाऊ रहें। एक सस्टेनेबल ग्रीन बिल्डिंग में निम्न विशेषताएँ होती हैं:
- 💧 कम पानी का उपयोग – रेन वाटर हार्वेस्टिंग और वॉटर-सेविंग फिटिंग्स
- ⚡ ऊर्जा दक्षता – सोलर एनर्जी, प्राकृतिक रोशनी और वेंटिलेशन का बेहतर उपयोग
- 🌳 प्राकृतिक संसाधनों की बचत – इको-फ्रेंडली और रीसायक्लेबल सामग्री
- ♻️ कम कचरा उत्पादन – वेस्ट मैनेजमेंट और रीसाइक्लिंग सिस्टम
- 🏠 स्वस्थ रहने की जगह – बेहतर हवा, रोशनी और कम प्रदूषण
🔍 क्यों ज़रूरी हैं ग्रीन बिल्डिंग्स?
ग्रीन बिल्डिंग्स न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करती हैं, बल्कि बिजली और पानी के बिल कम करने में भी मदद करती हैं। साथ ही, ये लोगों को एक स्वस्थ, सुरक्षित और बेहतर जीवनशैली प्रदान करती हैं।
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स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रभावी कदम (Steps to Promote Clean Energy)
तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के साथ निर्माण क्षेत्र में स्वच्छ और हरित ऊर्जा (Clean & Green Energy) को अपनाना अब समय की ज़रूरत बन चुका है। कंस्ट्रक्शन साइट पर ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग, चाहे वह साइट पर हो या ऑफ-साइट, वायु प्रदूषण को कम करने और कार्बन उत्सर्जन घटाने में अहम भूमिका निभाता है।
के.एन. राव, डायरेक्टर – एनर्जी एंड एनवायरनमेंट, ACC लिमिटेड के अनुसार, निर्माण स्थलों पर कुछ स्मार्ट और व्यावहारिक कदम अपनाकर कार्बन फुटप्रिंट को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
1️⃣ ऑक्यूपेंसी-आधारित लाइटिंग और एयर कंडीशनिंग
ऐसे सिस्टम अपनाएँ जो केवल तभी काम करें जब कमरे में लोग मौजूद हों। इससे बिजली की अनावश्यक खपत कम होती है और ऊर्जा की बचत होती है।
2️⃣ लो-VOC सामग्री का इस्तेमाल
निर्माण में Low-VOC पेंट, एडहेसिव, सीलेंट, कारपेट और कंपोज़िट वुड का प्रयोग करें। इससे इनडोर एयर पॉल्यूशन कम होता है और घर के अंदर की हवा ज़्यादा स्वच्छ और सुरक्षित रहती है।
3️⃣ हल्के रंग और रिफ्लेक्टिव मटीरियल चुनें
दीवारों, छतों और फर्श के लिए हल्के रंग और रिफ्लेक्टिव सामग्री का उपयोग करने से प्राकृतिक रोशनी बेहतर होती है, जिससे दिन में कृत्रिम लाइट की ज़रूरत कम पड़ती है।
4️⃣ बेहतर जल प्रबंधन और रेन वाटर हार्वेस्टिंग
पानी की बचत के लिए हाई-परफॉर्मेंस प्लंबिंग फिक्सचर्स का इस्तेमाल करें। साथ ही, वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) सिस्टम लगाकर जल संरक्षण को बढ़ावा दें।
5️⃣ पानी की निकासी और भू-जल स्तर सुधार
पोरस (छिद्रयुक्त) बिल्डिंग मटीरियल का उपयोग करें, जिससे पानी ज़मीन में आसानी से जा सके और भू-जल स्तर (Water Table) को बढ़ाने में मदद मिले।
6️⃣ औद्योगिक कचरे से बने निर्माण सामग्री अपनाएँ
ऐसे ब्रांड्स और बिल्डिंग मटीरियल चुनें जो अपने उत्पादों में फ्लाई ऐश जैसे औद्योगिक अपशिष्ट का अधिक उपयोग करते हों। इससे मिट्टी की ईंटों पर निर्भरता कम होती है और पर्यावरण संरक्षण को बल मिलता है।
पर्यावरण की ज़िम्मेदारी निभाता रियल एस्टेट सेक्टर

आज जैसे-जैसे लोग पर्यावरण प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण को लेकर जागरूक हो रहे हैं, वैसे-वैसे दुनियाभर की सरकारें सभी सेक्टर्स के लिए सख्त और स्पष्ट दिशानिर्देश जारी कर रही हैं। खासतौर पर रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर अब पर्यावरण की ज़िम्मेदारी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रियल एस्टेट सेक्टर में इतनी क्षमता है कि वह पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का प्रभावी समाधान कर सकता है। उद्योग विशेषज्ञ सिंगल के अनुसार, निर्माण कंपनियाँ अब लगातार इको-फ्रेंडली निर्माण प्रक्रियाओं को अपनाने पर ज़ोर दे रही हैं।
आज कई प्रोजेक्ट्स में:
- निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण (Dust Suppression) के उपाय किए जा रहे हैं
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) से प्राप्त रीसायकल पानी का उपयोग हो रहा है
- प्रोजेक्ट साइट के चारों ओर ग्रीन बफर ज़ोन विकसित किए जा रहे हैं
- निर्माण कचरे को सड़क निर्माण और भराव कार्यों में दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है
- सोलर एनर्जी और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाया जा रहा है
इन सभी प्रयासों का मुख्य उद्देश्य निर्माण प्रक्रिया को पर्यावरण-अनुकूल, ऊर्जा-सक्षम और सस्टेनेबल बनाना है।
विशेष रूप से एनर्जी एफिशिएंट सिस्टम्स और ग्रीन टेक्नोलॉजी पर बढ़ता फोकस भारत के कंस्ट्रक्शन सेक्टर को एक नई दिशा दे रहा है। आने वाले समय में यह बदलाव न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगा, बल्कि भारत को ग्रीन डेवलपमेंट की ओर भी मजबूती से आगे बढ़ाएगा।
✅ निष्कर्ष (Conclusion)
भारत का रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन सेक्टर अब केवल इमारतें बनाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह पर्यावरण संरक्षण की ज़िम्मेदारी भी समझने लगा है। ग्रीन बिल्डिंग्स, ऊर्जा-कुशल सिस्टम, रीसायकल पानी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उपाय भारत को एक सस्टेनेबल और सुरक्षित भविष्य की ओर ले जा रहे हैं। आने वाले समय में यह बदलाव न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आम लोगों की जीवनशैली और आर्थिक विकास के लिए भी बेहद फायदेमंद साबित होगा।
1. ग्रीन बिल्डिंग क्या होती है?
ग्रीन बिल्डिंग ऐसी इमारत होती है जिसमें कम ऊर्जा की खपत होती है, पानी का सही उपयोग किया जाता है और पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे प्रदूषण कम होता है।
2. भारत में ग्रीन बिल्डिंग्स को क्यों बढ़ावा दिया जा रहा है?
भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा है। ग्रीन बिल्डिंग्स ऊर्जा बचत और पर्यावरण संरक्षण में मदद करती हैं, इसलिए इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है।
3. रियल एस्टेट सेक्टर पर्यावरण संरक्षण में कैसे मदद कर रहा है?
रियल एस्टेट सेक्टर धूल नियंत्रण, रीसायकल पानी, सोलर एनर्जी, ग्रीन बफर ज़ोन और निर्माण कचरे के पुनः उपयोग जैसे उपाय अपनाकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहा है।
4. ग्रीन बिल्डिंग्स के क्या फायदे हैं?
ग्रीन बिल्डिंग्स से बिजली और पानी की बचत होती है, प्रदूषण कम होता है, रहने वालों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है और लंबे समय में रखरखाव की लागत भी घटती है।
5. क्या ग्रीन बिल्डिंग्स आम लोगों के लिए फायदेमंद हैं?
हाँ, ग्रीन बिल्डिंग्स में रहने से कम बिजली बिल, बेहतर हवा की गुणवत्ता और स्वस्थ जीवनशैली मिलती है, जिससे आम लोगों को आर्थिक और स्वास्थ्य दोनों लाभ होते हैं।
6. निर्माण में सोलर एनर्जी का क्या महत्व है?
सोलर एनर्जी नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है। इसका उपयोग करने से बिजली की लागत घटती है और कार्बन उत्सर्जन कम होता है, जिससे पर्यावरण को फायदा मिलता है।
7. भारत का कंस्ट्रक्शन सेक्टर भविष्य में किस दिशा में बढ़ेगा?
भविष्य में भारत का कंस्ट्रक्शन सेक्टर ग्रीन टेक्नोलॉजी, ऊर्जा-कुशल सिस्टम और सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर ज़्यादा ध्यान देगा, जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों मजबूत होंगी।


